भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेह / श्याम महर्षि
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:42, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण
टिटूड़ी रौ बोकणै
अर चांद री
बादळ्यां सूं
होंवती रैयी
लुक मिचणी
आखी रात,
पळकती बिजळीं
अर गरजता बादळ
ढळती रात रा
आभै मांय
मचावै तुरळ,
उजाळै रो
इन्दरधनख
बिरखा सूं
भीज‘र
करै सरूआत
नूंवैं दिन री,
नाचै-कूदै अर
गावै टाबर
बीच गवाड़
मेह बाबो आवै
सीटा-पोळी ल्यावै।