भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्टैण्डर्ड / रूपसिंह राजपुरी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:38, 18 अक्टूबर 2013 का अवतरण
भगवान मन्नै बोल्या,
ओ माई डीयर सन।
मैं तन्नै छप्पर फाड़'र,
दे स्यूं धन।
तो पैलो काम के करसी 'डीयर',
मैं कैयो सर छप्पर गी 'रिपेयर'।
बै बोल्या - अरै कदी तो,
गरीबी रेखा स्यूं ऊपर आया कर।
ख्याली पुलाव अर
मन गा लाडू खाया कर।
मैं कैयो भगवान,
थे गरीबां गा मन, ललचाया ना करो।
अकूरड़ी पर सोण आला नै,
शीश-महल रा सपना दिखाया ना करो।
मैं तो थारे कन्नूं,
छप्पर जित्ती ही आस करो हो।
थे भी तो आदमी गो 'स्टैण्डर्ड' देख'र ही,
बजट पास करो हो।