भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साहितकार : दो / शिवराज भारतीय

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:59, 18 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हैं वां सूं पूछ्यो
बा‘सा कीकर जीवो
फकत साहित् रै ताण
जठै
अरथ बिहूणा हुग्या
कविता रा सबद
पांगळां हुग्या गीत
उतार दीनी लोई
छोड़ न्हाकी प्रीत
स्यात्
देवता भी कदैई कूच करग्या
साहित सूं।
वै मुळक्या
इमरत घोळता-सा
उथळ्या
मन रा मीत
अमर रहसी कविता
अमर रहसी गीत
पोखता रहसी हमेस
आपसरी री प्रीत
म्हारा गीत
जद किणी
उदास चै‘रै नै
फूल ज्यूं खिलाद्यै
तद
वो मुळकतो
खिलखिलावंतो चै‘रो
म्हारो उमर बधादयै।