भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परकरती परेम / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:03, 18 अक्टूबर 2013 का अवतरण
आजकलै भण्या-गुण्या
घणां परकरती परेमी
अर आधुनिक हुग्या
वां रो कुदरत परेम
ओळखावै
घर में बण्यो माछलीघर
जिणमें रंग-बिरंगी
देसी-परदेसी
भांत-भंतीली माछल्यां
च्यार फुट री जिग्यां में
चक्करघिन्नी खावै
अर वै
वांनै देख‘र अणूंता राजी हुवै
कुदरत सूं हेत रो
दूजो दरसाव
वांरै अठै
भांत-भंतीलै पिंजरा में
भांत-भंतीलै पांख-पखेरू
भांत-भंतीले सुरां में
आखै दिन गरळांवता रैवे
पण वै
सगळां रो अरथ
‘हैल्लो-हैल्लो‘ ई लैवै।