भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुका बस्तर बिचारा क्या करे रे / संत तुकाराम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:09, 20 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत तुकाराम |अनुवादक= |संग्रह= }} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुका बस्तर<ref>वस्त्र</ref> बिचारा क्या करे रे,
अन्तर<ref>हृदय</ref> भगवान होय ।
भीतर मैला केंव<ref>कब</ref> मिटे रे,
मरे उपर धोय ।।

भावार्थ :
तुकाराम कहते हैं कि बेचारे वस्त्र को बार-बार धोने से क्या होगा? भगवान बाहरी वस्त्र में नहीं, हृदय में निवास करते हैं। आन्तरिक मैल को कब मिटाओगे? सिर्फ़ बाहरी सफ़ाई से तो हम मर जाएँगे यानी सिर्फ़ बाहरी सफ़ाई से हमारा बचाव नहीं होगा।


शब्दार्थ
<references/>