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चिहुँकेली बार-बार अँचर उतार चले / महेन्द्र मिश्र

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चिहुँकेली बार-बार अँचर उतार चले
बे हँसी के हँसी पति देख कहँरी।
मार-मार हलुआ निकाले ऊ भतरऊ के
डाँट के बोलावे कोई बात में ना ठहरी।
घरे-घरे झगड़ा लगावे झूठ साँच कहं
भूँजा भरी फाँके चुप्पे फोरे आपन डेहरी।
गारी देत बूढ़वा भतार के तो बार-बार
कहत महेन्द्र अबो चूप रह रे ढहरी।