भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नींबू है जमीरी माहताबी कागजी अनेक / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:36, 22 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)
नींबू है जमीरी माहताबी कागजी अनेक
मीठा अवर खट्टा तो अनार बिजदाना है।
जामुन रसाल मालदेह अवर-बम्बई किशुन
भोग राढ़ी जाके छोटी-चार दाना है।
आलू ओ सतालू वो पपीता के बतावे कौन
बड़ी नासपाती जामें देा ही चार दाना है।
द्विज महेन्द्र रामचंद्र सउदा कछु लीजिए आज
राज के कुमार तोहे जानत जहाना है।