कादम्बरी / पृष्ठ 3 / दामोदर झा
9.
जतय कलाकृत परबापर नित जा बिलाड़ि झपटै छल
भोजन आशा संग तकर व्यर्थे सब दाँत टुटै छल।
मणिमय महलक बीच नवोढ़ा पति सङ केलि करै छल
चारू दिशि प्रतिबिम्बहुँ जन बुझि लाजे सकुचि रहै छल।।
10.
जतय राति बिच तरुणीमूहक प्रभे प्रकाश जगै दल
छयी कलंकी निशि-निशि नभमे व्यर्थे चन्द्र उगै छल।
बाला-नयन कटाक्ष जतय बड़ धीरक प्राण हरै छल
तेज-तेज हथियार सकल शोभे टा एक करै छल।।
11.
वेश्यालय छल जतय भयंकर विषधर सर्प भवन सन
छल अगम्य अधलाह मार्ग सब उद्भट सिंहक वन सन।
निज पत्नी व्रत पुरुष जतय पर तिरिया मन नहि लाबय
कुलटा हयत कोना के नारी कतय जार पति पाबय।।
12.
ततय अपन भुजबल प्रतापसँ अरि-कुल तिमिर-विनाशक
गुण गण यशक चन्द्रिकासँ नित बुध जन कुमुद विकासक।
शूद्रक राजा राज्य करै छथि जनता नयन सुधाकर
आखण्डल सम सब जग पालक याचक-वर्ग-कृपाकर।।
13.
से राजा यौवनारम्भमे जीति भुवन केर अरिबल
पालन कार्य सचिव अर्पित कय छला विलासहिं डूबल।।
जनजन-मनरंजन करैत ई अर्थ धर्म अनुकूले
दिन बितबथि नव-नव विनोदसँ नव यौवन सुखभूले।।