भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम / नीरजा हेमेन्द्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:25, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरजा हेमेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तुम्हारी स्मृतियाँ
इन स्याह रातों के
अन्धकार को तोड़ती
आसमान में दीप्त
सुनहरे तारे -सी
तपती भूमि पर
बारिश की प्रथम फुहार
साँझ के आसमानी क्षितिज से
तुम्हारी स्मृतियाँ उतर आती हैं
इन्द्रधनुष-सी
जीवन में मोड़-दर-मोड़
तुम मिलते रहे
प्रेम निवेदन से भरे
तुम्हारे नेत्र
मुझे कराते अधूरेपन का एहसास
तुम विलीन हो जाते
पत्तों पर ठहरी हवाओं में
टेसू के फूलों में
समन्दर में बनतीं लहरों में
फिर भी
मैं तुम्हे पा लेती
सर्वत्र........।