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घर है या देवठान है / कुमार रवींद्र

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घर है यह या देवठान है
 
उठते ही
देहरी की, साधो
पैलागी दादी हैं करतीं
अँचरा-बाँधे रोज़ सबेरे
आँगन दीया अम्मा धरतीं
 
हर चौखट पर
सतिये का, देखो, निशान है
 
ताखे-ताखे
देवा बैठे
बाबा हैं उनसे बतियाते
रात-हुए वे पूरे घर में
जोत दिखाकर शंख बजाते
 
बाबा कहते
रहता घर में महाप्राण है
 
भीतर की दालान
उसी में
पिंजरे में रहता है तोता
बाबा रोते रामकथा पढ़
बाबा के सँग वह भी रोता
 
पार सड़क के
दिखती फूलों की दुकान है