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बड़ा ही बावरा है / कुमार रवींद्र
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बड़ा ही बावरा है
हलाहल पी रहा यह देवता है
नदी के घाट पर
हमको मिला कल
लिये था वह
किसी देवांगना का जला आँचल
उसी के गाँव का
अब पूछता फिरता पता है
कहीं सागर
बिलोया जा रहा है
उसी से यह हलाहल
दिशि-दिशाओं में बहा है
सुनो, यह
महाढोंगी देवताओं की खता है
इधर है घाटियों में
लगा मेला
हुआ वह राख पर्वत
जहाँ वह रहता अकेला
भगीरथ को
सडक की भीड़ में यह खोजता है