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खोज रहे हम / कुमार रवींद्र
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अँधियारे में खोज रहे हम
नदी-घाटियों को
सूरज की पहली परछाईं
वहीं मिली थी कल
खुश होकर किरणों से बातें
करता था जंगल
पहली बार र्भी देखा था
वहीं तितलियों को
नदी उन दिनों
आसमान को छूकर बहती थी
वहीं पास में पगडंडी
रह-रहकर हँसती थी
हवा नचाती थी जब
उस पर गिरी पत्तियों को
लोग बेच आये सूरज को
सिन्धु-पार जाकर
प्यास बढ़ी इतनी महलों की
नदी हुई पोखर
और खा गये शाह मारकर
सगुनपंछियों को