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वही राग है / कुमार रवींद्र

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सात सुरों में जो बजता है
वही राग है
सबके भीतर
 
कल कनखी-कनखी थी हमने
साधो, पाती पढ़ी नेह की
बजती धीरे-धीरे मन में
कहीं तान है पकी देह की
 
कस्तूरी हिरना के जैसे
खोज रहे हम
उसको बाहर
 
पतझर में भी कोंपल होतीं
कई बार पिछली इच्छाएँ
जब-जब
जंगल हुआ समय है
हमने बाँची परीकथाएँ
 
मीठी लय का ताना-बाना
बुनते रहते
ढाई आखर
 
धूप-छाँव के हर खेले में
साँसें वंशी-धुन होती हैं
वही हमारे सीने में भी
रंगों के उत्सव बोती हैं
 
यह सब अगर नहीं होता तो
हो जाते हम
अब तक पत्थर