भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता होने की यह घटना / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:10, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविता होने की
यह घटना
आज सुबह की
 
ठीक सामने से निकली
हँसती एक लड़की
लगा कि जैसे
बिन बादल ही बिजुरी चमकी
 
भूले हम तकरार
रात की
बिला वज़ह की
 
लय हँसने की भीतर पैठी
गीत हो गई
उजली धूप हुई साँसें
जो रहीं सुरमई
 
लड़की थी वह नहीं
हमारी इच्छाएँ थी
कनखी-कनखी उसकी
मानो, कविताएँ थीं
 
दिन-भर
मौसम ने
बातें कीं बहकी-बहकी