भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यहाँ घाट पर / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:29, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यहाँ घाट पर
उनको जल दो
जो अब नहीं रहे
 
यानी उन
रिश्तों-नातों को
जो थे नेह-बँधे
साधू के इकतारे को
जिस पर सुर रहे सधे
 
संवादों को
कनखी के
जो औघट घाट बहे
 
झील-पार के केसरवन को
जो कल राख हुआ
आसमान को
जिसमें कल था
उड़ता दिखा सुआ
 
उन दुक्खों को
जो हैं हँसकर
हमने साथ सहे
 
साँसों-साँसों
इन्द्रधनुष होती कविताओं को
मौन ढलीं रेती पर
उन आकुल संध्याओं की
 
जल दो
उन अर्थों को भी
जो हमने नहीं कहे