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खामोश मुहब्बत / इमरोज़ / हरकीरत हकीर

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मैंने जब अपने आपको
फूल सोचा था उसे खुशबू सोच लिया था
पर …
किसी के साथ चल कर भी देखा
किसी के साथ फूल बनकर भी देखा
किसी के साथ शायरी करके भी देखी
किसी को न अपने साथ
जागना आता है न औरत के साथ …
मैं तो कब की खामोश
फूल बनी खुशबू को उडीक रही हूँ
आज मेरी उडीक ने
इक नज़र पढ़ ली है
उसकी जो है
जो हवाओं को पूछता है
मैं भी तुम्हारी तरह आज़ाद और अदृश्य
रहना चाहता हूँ
हवाओं ने कहा
खामोश मुहब्बत कर ले
किसके साथ
जो भी अच्छा लगे
अभी तो अपना आप ही मुझे अच्छा लगता है
जब कोई अच्छी लगी
फिर खामोश मुहब्बत भी कर लूंगा
मैं आज उसे मिलने जा रही हूँ