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कादम्बरी / पृष्ठ 30 / दामोदर झा

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4.
कय आरती चुमाओन कयलनि दधि अक्षत केर ठोप लगबिते
भूषण वस्त्र निहुँछि क फें कथि सब माता-गण मंगल गबिते।
एहिना कते काल के जानए हर्षक चहुँ दिशि धार बहै छल
सब क्यो सब किछ दान करय जे लिअय तकर आभार गहै छल॥

5.
कहुना राजकुमार ओतयसँ बड़-बड़ कठिने फुरसति पओलनि
पुनि शुकनासक भवन पहुँचि क हुनक चरणदुहु शीश लगओलनि।
शुकनासो आलिंगन क’ लगले सुवर्ण सिहासन देलनि
हुनका आगूकेर भूतलपर बैसि कुमार महत्व जनओलनि॥

6.
शुकनासहुके आसन तजिते हाथ जोड़ि क पुनि बैसओलनि
मधुर वचन किछ समाचार कहि हुनक हृदय आनन्दित कयलनि।
उठि मनोरमाकेर चरणहुँपर भूपकुमार माथ निज राखल
ओहो कोर बैसाय नेहसँ जल भरि आँखि सुअवसर भाषल॥

7.
कते कालपर बिदा माङि हुनका घरसँ कुमार बहरयला
पहिनहिसँ भूपाल सजाओल राजकुमार भवनमे अयला।
सबटा समावेश सुखकर लखि चन्द्रापीड़ प्रफुल्लित भेले
इन्द्रायुधहुक वास अपन भवनहिं केर एक भागमे देले॥

8.
जहिना चन्द्रापीड़क दरसन आलिंगन क्रम राजभवनमे
वैशम्पायनहुक सब तहिना नहि छल अन्तर कनिंओ मनमे।
पुत्रनेहमे भेद न थोड़बो दुहु छथि सतत दुहुक हित करिते
सचिवो राजतनय लय चिन्तथि राजा छथि सचिवक सुत भरिते॥