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कादम्बरी / पृष्ठ 32 / दामोदर झा

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14.
छल अभिषेकक दिन लगिचायल राजकुमार सचिव केर घरमे
आयल छला भेट करबा लय भार अबैलय छलनि उपर मे।
बैसि सुचित शुकनास कहलथिन हानि लाभ केर सबटा मारग
श्रीमद युवती जन केर दोषहुँ जे कहु राजनीति केर पारग॥

15.
बाउ, अहाँ सब शास्त्र जनै छी विनयशील सब गुणकेर आकर
थिरमति छी, हम की उपदेशब सकल कलहुँ मृदु जेना सुधाकर।
किन्तु भुवनसँ बढ़ले सम्पति चड़हल यौवन बयस मनोहर
शक्ति अपार, कलेवर सुन्दर, ई सबटा अछि मिलल दुसह भर॥

16.
एक एक टा एहि चारूमे सकल अनर्थक होइ अछि कारण
जकरा लगमे चारू संगहिं दैवे हुनकर जीवन-तारण।
लक्ष्मी नीको लोकक प्रकृतिक लगले दोसर रंग करै अछि
बिरले एकर परिग्रह नहि ई जकरा हृदय विकार भरै अछि॥

17.
ज्वर लक्ष्मीकृत परम भयंकर सदिखन गर्मीके चढ़बै अछि
व्यक्तवादिता नष्ट करय पुनि भक्तहुं विषय अरुचि बढ़बै अछि।
हित वा अहित सुनय नहि देखय कहलहुँ पर नहि बात बुझै अछि
धनक घमण्डे पागल राजा कखन करत की के समुझै अछि॥

18.
कुलक्रमागत भेनहुँ लक्ष्मी ई ककरो विश्वास न दै अछि
काल्हि जतय सोलहो कला छलि आइ ततहिंसँ बिदा मंगे अछि
बातरसक रोगी हो अथवा जनु तरबा मे काँट गड़ल हो
थिर थय पयर कतहुँ नहि लक्ष्मी राखय जनु ठेहुन उखड़ल हो॥