भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दरारें / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:34, 26 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} {{KKCatNazm}} <poem>आज की रात बड...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आज की रात
बड़ी अजीब है
बारिश की बूंदें
काँपती रहीं
यादों की पत्तियों पर
दबे क़दमों से
तुम्हारे कहे लफ्ज़
आँखों की कोरों के
दरवाजे खड़खड़ाते रहे …
और मैं देर रात तक
दोनों हाथों से
आईने पर पड़ी
दरारें छुपाती रही ….