भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रुतों के मौसम / हरकीरत हकीर

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:27, 26 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} {{KKCatNazm}} <poem>तुम्हारी मु...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारी मुस्कान के छींटे
मेरे वजूद पर तब आ गिरे
जब जलते अक्षरों ने
जला दिया था मेरा जिस्म …
तेरी होंद ने हाथ तब पकड़ा
जब दरिया चुप की समाधि में
उतर गया था …
तेरी मुहब्बत ने मेरी ओर
तब आँख भरी …
जब साँसों की भटकन रुक गई थी
मुझसे कटे परों से उड़ा भी न गया
और रुतों के मौसम बीत गए ….