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कादम्बरी / पृष्ठ 53 / दामोदर झा

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54.
बालब्रह्मचारी केर ई गति लखि आश्चर्यित भेलहुँ
एक भाग पाथर पर लगमे बैसि कान्ह कर धयलहुँ।
कहलहुँ मित्र किए कातर छी सुधि-बुधि होश हेड़यलहुँ,
जाहि मार्गसँ प्रस्थित छी से कोन शास्त्रमे पढ़लहँ॥

55.
देने छथि उपदेश कोन गुरु ई मोक्षक की पथ थिक
ककरासँ सीखल ई जे आराध्य देव मन्मथ थिक।
इन्द्रिय प्रबल उपद्रव कयलक राकू होश सम्हारू
वशीभूत कय काम हँसे अछि ताहि शीघ्र फटकारू॥

56.
एतबा सुनि हमरा दिशि ताकल बेबश भाव बहै छल
आँखि अश्रु विह्वल शरीर किछु कहबा लय चाहै छल।
कते काल पर कहलनि हमरा की उपदेश बकै छी
बुझितो छी चाहै छी तैयो मन नहि रोकि सकै छी॥

57.
बीति गेल उपदेश-काल मदनानल देह जरै अछि
प्रतीकार किछु करू दुसह पीड़ा ई प्राण हरै अछि।
अहाँ स्वस्थ छी काम-कुसुमशर विषधर नहि डसने अछि
युवती केर कटाक्ष चरण नहि मानसमे रखने अछि॥

58.
उपदेशी तकरा जकरा लग बिनु मल मन पटल हो,
हमरा लग सब वृथा जकर तनुसँ अधिकार हँटल हो।
ज्वालासँ ई प्राण पकै अछि वपुहुँ जरयबे करते
प्रतीकार किछ शीघ्र करू नहि तँ ई जीवन हरते॥