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कादम्बरी / पृष्ठ 57 / दामोदर झा

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74.
फटलहुँ जरलहुँ मरलहुँ हम हा एसगर एतय रहब की
हाय पिता मुनिश्वेतकेतुके सुरपुर जाय कहब की।
हाय महाश्वेता पिशाचिनी जपमाले नहि हरले
हिनकर प्राण हरण कयके तो किए ने मरले जरलें॥

75.
थमहूँ हम अहींक सङ जायब मित्र, करब नहि देरी
एतय नरक केर वास करत के सहब न शोकक ढेरी।
इत्यादिक विलापसँ पाथर वृक्षक हृदय हिलओने
सुनलहुँ साफ कपिंजल कानथि हुनकर गरदनि धयने॥

76.
थरथर देह कँपैत चटुल गतिसँ हम प्यर बढ़ओलहुँ
केओ उठओने उड़ि जाइत हो तहिना ततय पहुँचलहुँ।
ओतय जाय देखल हुनका तहिखन जीवन उसरल छल
टुकटक आँखि तकैत भूमिपर दुहू हाथ पसरल छल॥

77.
दुसह शोकसँ ज्ञान हेड़ायल मूर्छित भय हम खसलहुँ
तकरा आगू बड़ी काल जनु अन्धकूपमे धसलहुँ।
एतबा कथा सुना घटनाके अभिनय देखा भरै लय
मूर्छित खसलि महाश्वेता जनु धरणी साक्ष्य करै लय॥

78.
चन्द्रापीड़ देखि हिनका बेहोश पड़लि धरती पर
कयलहुँ प्रश्न दोष हमरे थिक सोचि छला चिन्तातुर।
लगले उठि केराक पातसँ शीतल मारुत कयलनि
स्वच्छ सलिल मुखपर सीचल कोनहुना होश करओलनि॥