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कादम्बरी / पृष्ठ 78 / दामोदर झा

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10.
कादम्बरी महाश्वेता मदलेखा केर गुण
कहलनि सबटा रहला ओतय जेना ई पाहुन।
ताही बात चीतसँ सौसे दिवस बितओलनि
कादम्बरी नेह सुमिरैत राति भरि जगलनि॥

11.
दोसर दिन भिनसरे छलाह सभासे बैसल
कखन केयूरको द्वार पाल तै सङ प्रविशल।
उठला राजकुमार विहँसि धरि हृदय लगओलनि
आदरसँ धय हाथ आनि निकटे वैसऔलनि॥

12.
केयूरक कहि कुशल सभक निज गेठरी खोललक
पान सुपारी लौंग अड़ाँची माला देलक।
आयल छला बिसरि से शेषहार पहिरऔलक
कहने छलै सखी सब जे से सबटा कहलक॥

13.
उठला राजकुमार तुरत ओकरे कर धयके,
चलला जतए मन्दुरा छल इन्द्रायुध हरि केर।
घास अश्वके दैत ओतय एकरासँ पूछल
हमरा अयलापर जे भेल कहू सब बिनु छल॥

14.
कहलक केयूरक अपने जैखन बहरयलहुँ
बाहर सबसँ बिदा भाङि इन्द्रायुध चढ़लहुँ।
तैखन कादम्बरी मन्दरक छत पर गेले
बाट अहाँक विलोकल टुकटुक बेसुधि भेले।