कादम्बरी / पृष्ठ 122 / दामोदर झा
19.
व्यर्थे पुजलहुँ कामदेवके सरमे फोड़ि भसबिहे
अपनहि हाथे चित्र बनओलहुँ हिनक बचासे रखिहे।
पोसल हरिणी बड़ मेमिअयतौ जंगलमे छोड़बबिहै
वनमानुषी वृथा की रखबे हिम गिरि ताहि पठबिहै॥
20.
आमक संग माधवी लताकेर हम विवाह कय देलिऐ
काल्हि चारि दिन पुरिए जयतै तो ही कंगन खोलिहै।
शुक कैलास छलय पिजड़ामे सरमे बड़ सारस अछि
कालिन्दी मैना बड़ बजतौ लाल अशोक सरस अछि॥
21.
जे प्रिय वस्तु हमर छल सबटा सावधान भय रखिहे
अथवा मोह वृथा अछि तोरा जैह फुरौ से करिहे।
एतबा कहि मदलेखाके लग गेलि महाश्वेताकेर
धयल पाँज भरि गरदनि पकड़य जहिना लता लता केर॥
22.
कहलनि प्रियसखि बिदा मंगै छी आन जन्म पुनि भेटब
एखन जाइ छी वैश्वानरक शिखामे सब दुख मेटब।
जीबू अहाँ देवता कहने छथि ओ भेटबे करता
जते तपस्यामे दुख भोगल सकल आबि ओ हरता॥
23.
जीवन हमर निरर्थक हयते एतबा कहि चलि देले
बड़ प्रसन्न मनसँ रोमांचित राजकुमर लग गेले।
हाथ जोड़िक शीश झुकओलनि दूनू पयर उठओलनि
अपने पद्मासनसँ बैसलि पयर कोरमे रखलनि॥