भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कादम्बरी / पृष्ठ 124 / दामोदर झा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:19, 31 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दामोदर झा |अनुवादक= |संग्रह=कादम्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

29.
इन्द्रायुध डोरी तोड़ै छल तकरा लगमे आयल
खोलि राशि धय झट अच्छोदसरोवर निकट पड़ायल।
देखि तरलिका शंकित भय पाछसँ दौड़ल गेले
देखल डूबल दुहू सलिलसँ प्रकट विप्रसुत भेले॥

30.
आबि महाश्वेताके कहल अहाँ केर परिचिततम छी
विष-वियोग मृत पुण्डरीककेर मित्र कपिंजल हम छी।
कहल महाश्वेता विस्मित भय हम कृतघ्न किछु कम छी
हमरा घर जा जे जे कहलहुँ सब सुमिरनमे क्षम छी॥

31.
हुनका लय उड़ि गेल कतय ओ सब बात कहू ने
अयलहुँ किए एते दिन पर से पुरना विषय गहू ने।
कादम्बरी सखीजन सब क्यो आँखि फाड़ि देखै छल
चन्द्रापीड़क जे अनुगामी लखि सुनि सब चौकै छल॥

32.
कहल कपिंजल सुनू अहाँके वनमे कनिते छोड़लहुँ
जे मित्रक शरीर लय उड़ले तकरा पाछ उड़लहुँ।
लय तकरा ओ विधुमण्डलमे फटिक शिलापर रखलनि
हम पाछूमे ठाढ़ छलहुँ घुरि बड़ सिनेहसँ कहलनि॥

33.
पुत्र कपिंजल, हम रजनीकर छी उदयाचल उगलहुँ
अमृत किरणसँ जल सब ठाँ हम आप्लावित कयलहुँ।
अहाँ जखन बिरहानल दुख लखि हेमकूट चल गेलहुँ
छटपट करिते कामानल ई छला अहाँ नहि अयलहुँ॥