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कादम्बरी / पृष्ठ 127 / दामोदर झा

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44.
पूर्व देहकेर ज्ञान सभक सम्बन्धक सुमिरन कयलहुँ
किन्नर अनुसरि चन्द्रापीड़हुँ हम एहि ठाँ लय अनलहुँ।
जनिका अहाँ क्रोध कय दुस्सह शापानले जरओलहुँ
वैशम्पायन छला पुण्डरीके से किछ नहि जनलहुँ॥

45.
पूर्व जन्मकेर नेहे खींचल आयला छला मिलै लय
प्रेम देह नहि आत्मा केर गुण से सबके बुझबै लय।
एतबा सुनल महाश्वेता बपहारि काटिके कानल,
कहल विधाता दुर्मति हमरा की देलनि नहि जानल॥

46.
हम पिशाचिनी दोसर जन्महुँ हिनकर हत्या कयलहुँ
दू टा ब्रह्मवधक पातकसँ घोर नारकी भेलहुँ।
कहल कपिंजल हुनक मृत्युमे नहि अहाँक साक्षी अछि
विधि विधान दुर्घट करबालय तत्पर अपराधी अछि॥

47.
पूछल कादम्बरी युवक ऋषि, संग अहीकेर डूबल
गेल बेचारी कतय पत्रलेखा से नहि किछु बूझल।
कहल कपिंजल डुबला उत्तर गतिविधि नहि हम जनलहुँ
के ओ छलय कतय पुनि गेले से सब किछु नहि बुझलहुँ॥

48.
हम जाइत छी पिता श्वेत केतुक लग ई सब कहबनि
ओ त्रिकालदर्शी छथि सबटा कहता जे किछ पुछबनि।
जनम जनम दोहरायल दुहुके शाप अमोघ चढ़ल अछ
कतय दुहूक जन्म पुनि से उत्कण्ठा सुनक बढ़ल अछि॥