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कादम्बरी / पृष्ठ 129 / दामोदर झा

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54.
चन्द्रापीड़क देह सुगन्धित तेल फुलेल लगओलनि
तखन मनोहर शीतल जलसँ जिबिते जकाँ नहओलनि।
कोमल पटसँ पोछल वस्त्राभूषण सब पहिरओलनि
केसरि कर्पूरक संग चानन घसल ललाट लगओलनि॥

55.
फूलक गजरा गर पहिरओलनि मह मह धूप जरओलनि
देवमूर्ति सम साज सजाक आत्मसमर्पण कयलनि।
आन जते जे छल कनिओ नहि निज परिचर्या कयलक
कानय सिसकि कतहु क्यो मौने सौ से दिवस बिओलक॥

56.
पड़लै साँझ राति भरि सब क्यो बैसल मुख निरखै छल
अपना देहक सुधि छल ककरा कौखन क्यो बिलखै छल।
तेसर दिन भिनसरे उठल सब जा जा बदन निंघाड़य
निर्विकार सौ से तनु पाबय पुनि निज लोचन फाड़य॥

57.
कादम्बरी महाश्वेताके गरदनि छानि कहै छनि
चलू सखी, देखै लय हुनकर ओहने अंग लगै छनि।
विकसित कमल जकाँ मुख मण्डल कनिओ नहि मुरझायल
सौ से देह सुभग पहिनहि सन सोना जेना तपायल॥

58.
आबि महाश्वेता देखल सेनापतिके बजबओलनि
अयला दौड़ि बलाहक तनिका सकल अंग निरखओलनि।
किछु उत्साहित भेल परस्पर सब दिशि सब तकने छल
कहय परस्पर सत्ये अछि जे नभवाणी कहने छल॥