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कादम्बरी / पृष्ठ 141 / दामोदर झा

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4.
सबटा सुमिरल चन्द्रापीड़ प्राण सन मानथि
एसगर हमरा बित ओ कतहु रहब नहि जानथि।
हुनका संग सब विद्या पढ़ल जीह पर आयल
साफ वर्ण उच्चारण विद्वानहि सन पायल॥

5.
तहिना विरह महाश्वेताक हृदयमे पैसल
ताहि आगिसँ निशि दिन जरी ततहि हम बैसल।
निज करसँ हारीत नेहसँ सतत खोआबथि
ऋषि कुमारसँ हमरा लय मृदु फल अनबाबथि॥

6.
बड़ आदरसँ पालित हम किछु मजगुत भेलहुँ
हरिअर जनमल पाँखि उड़क इच्छो मन कयलहुँ।
पिता भवनसँ ताही बीच कपिंजल अयला
हुनकर देल निदेशरत्न हमरा लय लयला॥

7.
तनिकर वचन अकानि कहल हम मित्र, एतय छी
आबि सकब हम नहि अपनेसँ अहाँ जतय छी।
दौड़ल अयला निकट हाथसँ मोहि उठओलनि
दुहू आँखि जलधार बहबिते हृदय लगओलनि॥

8.
कहलनि कनितो मित्र, अहाँक दशा की भेले
कठिन तपस्या योग समाधि कतय चल गेले।
लक्ष्मी सौ पल पिता श्वेतकेतुक आश्रित भय
आइ बनल छी सूगा मलिन पाप संचित कय॥