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कादम्बरी / पृष्ठ 154 / दामोदर झा

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69.
सङमे जे दल बूढ़ तुरत हुनके पथ गहले
सभाजनक सङ भूपति उपरे घाड़े रहले।
पूर्व जन्मकेर सब किछ शूद्रक सुमिरन कयलनि
हेमकूटपर कादम्बरी प्रेयसी बनलनि॥

70.
हिनके चन्द्रापीड़ देह एहुखन ओ सेबथि
तेल फुलेल लगाय रौद वर्षासँ डेबथि।
कादम्बरी वियोगक आगि हृदयमे जगलनि
बिनु धुआँ भीतर भीतर ओ पजरय लगलनि॥

71.
अन्न पानि नहि रुचनि बात ककरो नहि मानथि
जे हित लग जा कहनि ताहि उनटे रिपु जानथि।
पुण्डरीक वैशम्पायन शुकके लगमे राखथि
अर्ध बताह जकाँ ओकरहिसँ किछु किदु भाषथि॥

72.
चलू मित्र, उड़ि संग अहीकेर हमहूँ जायब
छथि अच्छोद सरोवर लग लोचन फल पायब।
वैशम्पायन कुहरथि ततय महाश्वेता लय
दुहुक हृदय विरहागि ताप तापित तनु तलफय॥

73.
छटपटाथि दिन राति वैद्य औषध की जानत
भेलनि नेह कतहु नहि विरह ज्वर के मानत।
सब समाज चण्डालकुमारीके गरिअओलक
ओएह राक्षसी आबि एतय किछु टोना कयलक॥