भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कादम्बरी / पृष्ठ 155 / दामोदर झा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:23, 31 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दामोदर झा |अनुवादक= |संग्रह=कादम्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
74.
एहिना दुख बढ़िते रहनि भेला भूप अचेत।
सब उपचार वृथा छलनि मुइला नेहक खेत॥
75.
वैशम्पायन शुक तथा विरह महाश्वेताक।
कष्ट भोगि पंचत्व फल पओलनि कामुकताक॥