भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नए साल पर / सिद्धेश्वर सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:42, 10 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिद्धेश्वर सिंह |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सर्दियाँ आ गईं सुस्ताइए,
धूप को ओढिए-बिछाइए ।
बर्फ़ के बेदाग़ सर्फ़ पर अपना,
नाम लिखिए और भूल जाइए ।
माना सचमुच ज़िन्दगी है रंजोग़म,
फिर भी ख़ुशियाँ बाँटिए ग़म खाइए ।
आएगा अच्छा समय विश्वास है,
बस इसी विश्वास में रम जाइए ।
प्यार का एहसास एक अलाव है,
आग अपने प्यार की सुलगाइए ।
हो मुबारक आपको यह साल !
कम से कम इस साल मत भरमाइए ।