भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिसू ने पिया तो क्या / हातिम शाह
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 12 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हातिम शाह }} {{KKCatGhazal}} <poem> आब-ए-हयात जा क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिसू ने पिया तो क्या
मानिंद-ए-ख़िज्र जग में अकेला जिया तो क्या
शीरीं-लबाँ सीं संग-दिलों को असर नहीं
फ़रहाद काम कोह-कनी का किया तो क्या
जलना लगन में शम्अ-सिफ़त सख़्त काम है
परवाना जूँ शिताब अबस जी दिया तो क्या
नासूर की सिफ़त है न होगा कभू वो बंद
जर्राह ज़ख़्म-ए-इश्क़ कूँ आ कर सिया तो क्या
मोहताजगी सूँ मुझ कूँ नहीं एक दम फ़राग़
हक़ ने जहाँ में नाम कूँ ‘हातिम’ किया तो क्या