Last modified on 13 नवम्बर 2013, at 12:33

तअल्लुका़त की क़ीमत चुकाता रहता हूँ / हसीब सोज़

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:33, 13 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हसीब सोज़ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तअल्लुका़त की क़ीमत चुकाता रहता हूँ ।
मैं उसके झूठ पे भी मुस्कुराता रहता हूँ ।

मगर ग़रीब की बातों को कौन सुनता है,
मैं बादशाह था सबको बताता रहता हूँ ।

ये और बात कि तनहाइयों में रोता हूँ,
मगर मैं बच्चों को अपने हँसाता रहता हूँ ।

तमाम कोशिशें करता हूँ जीत जाने की,
मैं दुश्मनों को भी घर पे बुलाता रहता हूँ ।

ये रोज़-रोज़ की *अहबाब से मुलाक़ातें,
मैं आप क़ीमते अपनी गिराता रहता हूँ ।

  • अहबाब=दोस्त (का बहुवचन)