भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता / फ़्योदर त्यूत्चेव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:18, 17 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़्योदर त्यूत्चेव |अनुवादक=वरया...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गर्जनाओं के बीच
अग्निकुण्डों के बीच
स्वतःस्फूर्त कटू-कलहों के बीच
आकाश से उतर आती है
वह दिव्य शक्ति

हम धरती-पुत्रों के पास
आँखों में वैंगनी आभा लिया
अद्वेलित समुद्र में वह
शान्तिप्रद उड़ेलती है द्रव।