भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैदान के ऊपर आकाश की ओर / फ़्योदर त्यूत्चेव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:28, 17 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़्योदर त्यूत्चेव |अनुवादक=वरया...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मैदान के ऊपर आकाश की ओर
उड़ान भरी है एक चील ने
ऊपर और ऊपर उड़ती वह
क्षितिज के छिप गई है उस पार
प्रकृति-माँ ने प्रदान किए हैं उसे
दो सशक्त जीवन्त पम्ख
लेकिन मैं -- धरती का सम्राट
धूल और पसीने में बँधा हूँ सिर्फ़ उसी से !...
(1835)