आल्या के लिए / मरीना स्विताएवा
1.
मालूम नहीं - कहाँ तुम हो और कहाँ मैं ।
पर गीत हैं वही पुराने और चिन्ताएँ भी वही पुरानी ।
उसी तरह के तुम्हारे साथ दोस्त !
उसी तरह के तुम्हारे साथ अनाथ !
बेघर, अनाथ, अपनी नींद खोए हुए
हम दोनों बहुत प्रिय लगता है होना साथ
दो पक्षी हम उठते ही गाने लगते हैं
दो घुमक्कड़ दुनिया के हाथों पलते हुए ।
2.
छोटे-बड़े हर तरह के गिरजाघरों में
भटकती आ रही हैं हम दोनों
हम दोनों भटकती आ रही हैं
दरिद्र, धनी हर तरह के घरों में ।
क्रेमलिन की दीवारों को देखकर
कहा था मैंने कभी - इसे खरीद डाल !
सोई रह निश्चिंत,
ओ मेरी ज्येष्ठ डरावनी सन्तान,
जन्म से ही तेरा अधिकार है क्रेमलिन पर ।
3.
जिस तरह मिट्टी के नीचे
कच्ची धातु से दोस्ती रखती है घास --
सब कुछ दिखाई देता है दो उजले गढ़ों को
इस विराट अथाह आकाश में ।
सिबिल्ल! बताओं, मेरी सन्तान को
क्यों मिली है नियति इस तरह की ?
क्यों मिली है नियति इस तरह की
आखिर उसे पूरी शताब्दी क्यों लगेगी
रूसी धरती और रूसी नियति प्राप्त करने में?