भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डाळा न्हाख्यां पछै / सतीश छींपा
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:45, 23 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतीश छींपा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatRajastha...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सोच री बाथां में
देखूं म्हैं
म्हारै देवता नैं
उणरै भोळापै नैं
अर आंख्यां मांय
बणती एक कहाणी नैं....।