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रेत (13) / अश्वनी शर्मा

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कहते हैं
यहीं कही
विलूप्त हुई सरस्वती
किंतु
नहीं हो पाई विलुप्त
बहती है सदा नीरा
आज भी
आदमी के मन में ।