Last modified on 29 नवम्बर 2013, at 07:50

हूणियै रा होरठा (1) / हरीश भादानी

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:50, 29 नवम्बर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सूकै अकरै तावड़ै
हाड मांस रा बोल
रगड़यां सांसो सांस
जगै हगड़ता हूणिया

आखर तो खीरां जिसा
चुगतां लागै डांभ
आला लीला बाळ
जगरौ तापै हूणिया

आखर रो सत ऊजळो
आखर रूप अकूत
आखर-चेतौ एक
हिरदै धारै हूणिया

आखर जुड़ बोली बणै
बोली उपजै हेत
हेत जूण रो सार
होठां राखै हूणिया

हेत हियै में ऊपजै
हुवै रगत - सौ लाल
उगटै हुवै हजार
रातौ एक न हूणिया

थूं नीं जाणै हेत री
बारखड़ी रो अर्थ
आखर लिखै अणूत
अबखौ लागै हूणिया

थै नीं देखी मावड़ी
थै नीं देख्यौ बाप
हेलाहेल मचा’र
थूक बिलावै हूणिया

हर तक गिटले हेत री
जीमै मसळ पिछाण
लेवै नहीं डकार
कांसारोणी हूणिया