Last modified on 17 नवम्बर 2007, at 20:01

रागभीनी तू सजनि निश्वास / महादेवी वर्मा

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:01, 17 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महादेवी वर्मा |संग्रह=सांध्यगीत / महादेवी वर्मा }} राग...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!
लोचनों में क्या मदिर नव?
देख जिसकी नीड़ की सुधि फूट निकली बन मधुर रव!

झूलते चितवन गुलाबी-
में चले घर खग हठीले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!

छोड़ किस पाताल का पुर?
राग से बेसुध, चपल सजीले नयन में भर,
रात नभ के फूल लाई,
आँसुओं से कर सजीले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!

आज इन तन्द्रिल पलों में!
उलझती अलकें सुनहली असित निशि के कुन्तलों में!

सजनि नीलमरज भरे
रँग चूनरी के अरुण पीले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!

रेख सी लघु तिमिर लहरी,
चरण छू तेरे हुई है सिन्धु सीमाहीन गहरी!

गीत तेरे पार जाते
बादलों की मृदु तरी ले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!

कौन छायालोक की स्मृति,
कर रही रङ्गीन प्रिय के द्रुत पदों की अंक-संसृति,

सिहरती पलकें किये-
देती विहँसते अधर गीले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!