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प्रेम-8 / सुशीला पुरी
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प्रेम
एक खरगोश है
हरी दूब की भूख लिए
वन-वन भटकता
कुलाँचे भरता
डरा.. सहमा
छुपा रहता है
मन की सघन कन्दराओं में,
उसकी नर्म मुलायम त्वचा की
व्यापारी
यह दुनिया
नहीं जानती
उसके प्राणों का मोल...!