Last modified on 14 दिसम्बर 2013, at 23:41

आदमी से आदमी तक की यात्रा / विपिन चौधरी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:41, 14 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शुरूआत से अन्त तक का सफ़र
आदमी से आदमी तक का ही है

भीड़ में ग़ुम होता आदमी
तनहाई से गुज़रता आदमी

आदमी से भिड़ता आदमी
आदमी के भीतर इन्सान खोजता आदमी

इतना सब होने पर भी
हरेक आदमी की एक आँख
ढूँढ़ती रहती है
अपने लिए ज़मीन का वह टुकड़ा
जिस पर किसी
दूसरे आदमी के पद-चिन्ह ना हों