हर लो हरि! सुख-सुविधा सारी, तुरत छीन लो धन-जन-मान।
पद-गौरव-अधिकार मिटा दो, धूल मिला दो झूठी शान॥
हर लो कला-बुद्धि-विद्या-मद, करो चूर्ण सारा अभिमान।
तुरत बहा दो विगलित करके ममता-विषयासक्ति महान॥
नाथ! हटा दो सारे पर्दे, तुरत मिटा दो सब व्यवधान।
जिससे दीख पड़े मोहन-मुख, नित्य मिलन-सुखका हो भान॥
पूर्ण अकिंचन कर दो, भर दो मनमें मधु मुरलीकी तान।
प्रेम-सुधा-रस-पूर्ण हृदय आ बसो, उसे नित निज गृह जान॥