भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छीप्पी भरी रगड़ेली चानन / भोजपुरी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:30, 20 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=थरुहट के ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छीप्पी भरी रगड़ेली चानन, डाबा कतरेली पाने;
डगरे भुलिया-भुली हाँक पारे मालती, चली जाईं सागरे असीलान।।१।।
बाबा बरिजेले, भइया बरिजेले, मात दीहली चार गारी;
जनि जाहु बेटी री सागर असीलाने, आइ परेले हथिसारे।।२।।
दुअरे में कुँअवाँ इनाइब, लाइ देबों चम्पा घन गाछे;
चम्पा बल्ते लइहे री बेच्ठी, अरफे झुरइहे लामी केस।।३।।
कुँअवाँ के पनिया कुँआहिन, सागरे के पनिया लटिआहिन;
पोखरा के पनिया लहइबों री अम्मा, अरड़े झुरइबों लामी केस।।४।।
इस सखी आगे चलै, इस सखी पाछै, री दस-बीस लिहले संग लाई;
ऊँची से मंदिल चढ़ी हेरेले मालती, कतहूँ ना देखे हथिसारे।।५।।
चीर-चोली खोले आड़र प धरेले, री जमुना में पड़े छहलाई;
पीछवा उलटी जब हेरेले मालती, आइ परेले हथिसारे।।६।।
आरे-आरे भइया महाउत रे, नमवो ना जानिले तोहारे;
इची एक भइया हाथी बिलमवतख् अंग लगाई लेती चीरे।।७।।
अरी-अरी बहिनि, कुँइयाँ पनिहारिन, रे नमवा ना जानिले तोहारे;
मोरे हाथी बहिनी री पानी के पिआसल, नाहीं माने साने के अंकुसिया।।८।।
केकर होलू बारी रे भोरी, केकर होलू बहुआरे,
केकर लागेलू छोट सरहजिया, तोही लेतीं हथिया चढ़ाई।।९।।
बाबा के होली बारी रे भोरी, री सइयाँ के होली बहुआरे;
तोहारो जे लागिले छोट सरहजिया, मोही लेत हथिया चढ़ाई।।१0।।