भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सावन मासे मदन झकोरे / भोजपुरी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:12, 21 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=थरुहट के ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सावन मासे मदन झकोरे, भादो ही जमुराज अइले,
हे हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे सजनी री।।१।।
दोआदसी लागल बा केंवाड़िया ए हंसा, अगम घर चेत करू।।0।।
लाटा जे धुनि माता जे रोवे, सिरवा रोवे जेठ भइया
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।२।।
डहर-धइधइ मेहर रोवे, सिरवा रोवे जेठ भइया
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।३।।
चार जइना मिली खाट निकाले, मुख पर चदरी तनावे,
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।४।।
चार जना मिली खाट उठावे, लेइ जाले घाट अवघाट
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।५।।
पाँच जना पाँच करमा जे करे, मुख पर अगिनी घराए,
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।६।।
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, घूमी-फिरी मंदिल निरेखे,
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।७।।
दोआदसी लागल बा केंवड़िया ए हंसा, अगम घार दूर बसे।।0।।
इहे मंदिलवा में अति सुख कइलीं, घूमी-फिरी मंदिल निरेखे,
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।८।।
आधा सरग जब हंसा गइले, बरमा पूछेले बए बतिया
ए हंसा, का-का-दान पुन कइले,
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।९।।
बालापन में खेली गंववलीं, तरूनी में खुद बिसरै,
ए बरमा, ना कुछ दान-पुर कइलीं, सुनबे री सजनी।।१0।।
दोआदसी लागल बा केंवड़िया ए हंसा, अगम घर दूर बसे।।0।।
आरा से चीरी-चीरी कइले नवखंड, वारमा पूछे एक बतिया
ए हंसा, काहें ना दान-पुन क अइल, सुनबे री सजनी।।११।।
दोआदमी मा खुलल बा केंवड़िया, ए हंसा, अगम घर चेत करु।।