भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कि सखि रे, कहाँ बिलमछ गिरधारी / भोजपुरी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:34, 21 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=थरुहट के ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कि सखि रे, कहाँ बिलमछ गिरधारी, साँझ भये नहिं आये मुरारी।।१।।
कि खोजन चलले मातु जसोदा, घर-घर करत पूछाई हे,
कारन कवन नाथ नहिं आये, सखि रे कंसा के डर भारी।।२।।
हाँ रे, झुंड-झुंड सखी सब आये, पारे जसोदा के गारी।
बरिजहु जसोदा जे अपने लाल के, कि सखि रे, सखियन के चोली फारी।।३।।
रोअत-कानत आवे मनमोहन, नयना से नीर बहाई,
झोरि लिये मोरा मटुक पीताम्बर, सब सखियन मिली मारी।।४।।