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प्रथमे गनेस चरन रीतु बान्हों / भोजपुरी

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प्रथमे गनेस चरन रीतु बान्हों, कि मति बुधि अगम गंभीर
नवरस बिरिछि सुरति मनवा साँच, कि तनिको न राखत सरीर।।१।।
तनिकों न राखत सरीर हरि रामा।।0।।
नैना से नीर ढरकि गइले, सामी कि रउरो से बोलियो लजाय
कि मोरे अस सुंदर घर बसे कामिनि, से हो कइसे दूर देशो जाय।।२।।
तुहुँ त छुलाछन सुनु कामिनी, रहु सॅंवसार निधन
कि जीअते मानसू करत अधापन, मूअले सह दाव पाय दुख।।३।।
दहिन चलत कोन समुझावो,
कि दिन गति बीतले घोर केतो दिन, सामी तोही के परबोधी,
कि लाजो ना लागे पिया तोर।।४।। कि हरि रामा।।0।।
इन्द्र की बाहीं धनिया परीछे, कि गजमोती दाहिन,
हाथ दस-पाँच पुरनवासी, सुनु बारी कारी परिछन जइबों जगरनाथ।।५।।
हाँ रे, घर ही बारे सामी महातम, तरुनी न पानी के सनेह।
आसाढ़ त मासे, सामी पंथ जनि जइह, कि दूर देसे गरजत मेघ।।६।।
हाँ रे, कायापुरवा मथनी, मायापुरवा बान्हों, कि जनि होइहें संग-साथ
जीवन जनम सुफल भल रहिहें, तबहिं जइबों जगरनाथ ।।७।।
हो रे, सावन सर्व सोहावन सामी, गह चढ़ि बोलत मोर,
चाहुं ओ दुर करत किलोले, हम तिरिया लागी माया-मोह।।८।।
हाँ रे, तुहुँ बारी कामिनि जनि त रोदन करु, जनि त लगावहु माया-मोह।।९।।
कि प्रान गइले चित एकहू न बूझ, कि पंछी होइके उड़ि जाय
हां रे तेजलों में तांतुल नइहर हत बंधों, कि तोहि सामी सेवों मनलाय
कि सबत सनेहिया सावन मासे तेजलों, मरबों जहर बिख खाय।।१0।।
सखि हरि रामा।।0।।
हाँ रे, काहे लाई लवला में घन अमरइया, कि काहे लाइ लवल फुलवर
काहे लाई छवल कि सीरी बंसहर घर, काहे लागी कइल बिआह।।११।।
कि बाबा लागी लवलो धनि धन अमरइया, कि माता लागी लबलो फुलवार
धनि लागी छवलीं में सीरी बंसहर घर, बंस लागी कइलीं बिआह।।१२।।
काहे लागी सामी रउरा ब्याह जे कइलीं, कि काहे लागी ले अइलीं बोलाय।
कि बाबा घरे रहतीं त बबुई कहइतीं, कि रहतीं मे कन्ना कुँआर ।।१३।।
सखी हरि रामा।।0।।
कि कायपुरवा मथनी, मायापुरवा बान्हो, जो होइहें संग-साथ
जीवन जनम सुफाल भल रहिहें, तबहिं जइबों जगरनाथ।।१४।।