भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ईसुरी की फाग-2 / बुन्देली
Kavita Kosh से
					
										
					
					   ♦   रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
 - अवधी लोकगीत
 - कन्नौजी लोकगीत
 - कश्मीरी लोकगीत
 - कोरकू लोकगीत
 - कुमाँऊनी लोकगीत
 - खड़ी बोली लोकगीत
 - गढ़वाली लोकगीत
 - गुजराती लोकगीत
 - गोंड लोकगीत
 - छत्तीसगढ़ी लोकगीत
 - निमाड़ी लोकगीत
 - पंजाबी लोकगीत
 - पँवारी लोकगीत
 - बघेली लोकगीत
 - बाँगरू लोकगीत
 - बांग्ला लोकगीत
 - बुन्देली लोकगीत
 - बैगा लोकगीत
 - ब्रजभाषा लोकगीत
 - भदावरी लोकगीत
 - भील लोकगीत
 - भोजपुरी लोकगीत
 - मगही लोकगीत
 - मराठी लोकगीत
 - माड़िया लोकगीत
 - मालवी लोकगीत
 - मैथिली लोकगीत
 - राजस्थानी लोकगीत
 - संथाली लोकगीत
 - संस्कृत लोकगीत
 - हरियाणवी लोकगीत
 - हिन्दी लोकगीत
 - हिमाचली लोकगीत
 
बैठी बीच बजार तमोलिन ।
पान धरैं अनमोलन ।
रसम रीत से गाहक टेरै, बोलै मीठे बोलन
प्यारी गूद लगे टिपकारी, गोरे बदन कपोलन
खैर सुपारी चूना धरकें, बीरा देय हथेलन
ईसुर हौंस रऔ ना हँसतन, कैऊ जनन के चोलन
 भावार्थ
अपने द्वार बैठी तुम तमोलन अनमोल पान धरे हो । रम्य रीति से ग्राहकों को बुलाती हो और मुस्कराती हो तो तुम्हारे
गाल पर जो फोड़े का निशान रह गया है, वह कितना प्यारा लगता है । जब चूना, कत्था, सुपारी मिलाकर पान किसी
की हथेली पर रखती हो तो किसको होश रह जाता होगा ।
	
	