गर्व सॅ कहै जाइयौ जे अहां हिन्दू छी।
समय सबटा सूनि रहल अछि,
गूनि रहल अछि अहांक भावार्थ।
आगां समय बखानत एहि युगक आख्यान--
--गर्व सॅ कहै जाइ छलौं अहां सब जे राक्षस छी।
चीत्कार सॅ भरल अछि तहखाना इतिहासक
उत्पीडन आ अत्याचार सॅ।
अहां कहलहुं जकरा अपन धर्मग्रन्थ,
कहबाक चाहै छल तकरा यातना-शिविरक आडिट-रिपोर्ट।
राक्षस अहां तहियो रही,
जहिया मनुस्मृति तय केलक अहांक जीवन-लक्ष्य।
मुदा, समय
नहुएं-नहुएं क' रहल छल अपन काज
सडल-गन्हाइत घाउ पर खैंठी जमा रहल छल।
धू-धू जरैत आगि पर पानि पटा रहल छल
समय अहां कें आदमी बना रहल छल
हे राक्षसक वंशधर लोकनि !
खुब खेललहुं अहां सब गुजरात-गुजरात
ठीक छै, अहां जितलहुं समय हारल
खैंठी काछि जिन्दा कएल घाउ टप-टप चुबैत शोणित।
जराओल धू-धू आगि
इतिहास कें कबाडखाना बनाओल
ठीक छै, जे अहां चाहलहुं सैह कएल।
मुदा समय
फेर करत अपन काज
कबाडक गंदगी एक-एक
हिला-हिला घुलाओत।
एक-एक घाउ पर तोपत खैंठी
एक-एक हृदयक आगि मिझाओत।
मुदा
समय भोर-दुपहर-सांझ
अहांक भविष्णु संतान सब कें दैत रहत खोभाटनि--
जे ओ सब एहन धरकटक चिल्का थिका
जे समय सॅ मेहतरे टाक काज करबाएब जनै छल
जखन कि मारिते रास लक्ष्य छलै जीवन के।
समय मुदा नहि बैसत चुपचाप
ओकरा पर बड भारी जिम्मा छै।
ओकरा एहि पृथ्वी कें बस' जोग बना क' रखबाक छै।
समय सब कें मिलाओत
बिनु मिलने कोना बचत पृथ्वी बसबा जोग?