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ईसुरी की फाग-1 / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तुम खों छोड़न नहि विचारें

भरवौ लों अख्तयारें

जब ना हती, कछू कर घर की, रए गरे में डारें

अब को छोड़ें देत, प्रान में प्यारी भई हमारें

लगियो न भरमाए काऊ के, रैयो सुरत सम्भारें

ईसुर चाएँ तुमारे पीछें, घलें सीस तलवारें


भावार्थ

तुम्हें छोड़ने का मेरा कोई विचार नहीं है, चाहे मरना पड़ जाए । मैं तुम्हें तब से गले में डाले हुए हूँ, जब तुम जवान

नहीं थीं और पुरुष के आनन्द की चीज़ नहीं थीं । अब तो तुम यौवन की मालकिन हो । अब, भला, कैसे छोड़ूंगा तुम्हें ।

अब तो तुम मेरे मन-प्राण में बसी हुई हो । बस, अब तुम्हें कोई कितना भी भरमाए, उसके भरमाए में मत आना ।

चाहें तुम्हारे पीछे तलवारें चल जाएँ और सिर कट जाएँ । लेकिन ईसुर को अब किसी बात की परवाह नहीं है ।